शिमला, नौ नवंबर (भाषा) हिमाचल प्रदेश में सर्दी की आमद के साथ ही चुनावी सरगर्मी अपने आखिरी पड़ाव पर है, लेकिन सियासी तस्वीर अभी भी धुंधली नजर आती है। इस बार सत्ता का सफर कौन तय करेगा, इसका फैसला काफ़ी हद तक इसी पर निर्भर दिखाई देता है कि इस पर्वतीय राज्य में पुरानी पेंशन योजना (ओपीएस) का मुद्दा भारी पड़ता है या फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता।

मुख्य विपक्षी कांग्रेस पार्टी ने अपने पूरे प्रचार अभियान को ही पुरानी पेंशन की बहाली के वादे की बुनियाद पर खड़ा किया है और उसे उम्मीद है कि वह ओपीएस और अपनी कुछ अन्य 'गारंटी" के जरिये हिमाचल में परिवर्तन की परम्परा बरकरार रखेगी।

दूसरी तरफ, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व और 'डबल इंजन की सरकार' की बदौलत हर पांच साल पर परिवर्तन होने की परम्परा को तोड़ने की जुगत में है।

स्थानीय मतदाता भी मौजूदा सियासी तस्वीर को लेकर कुछ स्पष्ट नहीं कह पा रहे हैं लेकिन कुछ लोगों का यह जरूर कहना है कि ओपीएस का मुद्दा काफ़ी बड़ा बन गया है।

शिमला के बनूटी इलाके के मतदाता यशपाल सिंह कहते हैं, "ओपीएस बड़ा मुद्दा है जिससे कांग्रेस को फायदा हो सकता है, लेकिन प्रधानमंत्री मोदी भी हिमाचल में बहुत लोकप्रिय हैं। इसलिए मैं यह कहने की स्थिति में नहीं हूँ कि सरकार किसकी बन रही है।"

शिमला शहरी क्षेत्र के मतदाता प्रवीण शर्मा का कहना है कि बहुत लंबे समय बाद यह ऐसा चुनाव होने जा रहा है जिसमें यह यकीन के साथ नहीं कहा जा सकता कि किसकी सरकार बन रही है, लेकिन लोगों के बीच ओपीएस, महंगाई और बेरोजगारी की चर्चा है।

कांग्रेस के नेता ओपीएस को लेकर भाजपा पर लगातार हमलावर हैं।

इस साल की शुरुआत में राजस्थान में ओपीएस की बहाली का ऐलान कर इस मुद्दे को जीवंत करने वाले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत मंगलवार को शिमला पहुंचे और कहा कि ओपीएस हिमाचल में सबसे बड़ा मुद्दा बन गया है।

उन्होंने कहा, "प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा पुरानी पेंशन के विषय की उपेक्षा नहीं कर सकते। ओपीएस को पूरे देश में लागू करना ही होगा।'

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रणदीप सुरजेवाला का कहना है कि 'मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर और भाजपा ओपीएस के सवाल पर बचने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए लोगों का ध्यान भटकाने के लिए कई दूसरे मुद्दे उठा रहे हैं जिनका जनता से कोई लेना-देना नहीं है। लेकिन लाखों कर्मचारी और सेवानिवृत कर्मचारी ओपीएस ही चाहते हैं।"

दूसरी तरफ, केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अनुराग ठाकुर ने संवाददाताओं से कहा कि जब हिमाचल में पुरानी पेंशन खत्म की गई तो कांग्रेस की सरकार थी। उन्होंने यह सवाल भी किया कि कांग्रेस की दो बार प्रदेश में सरकार बनी, तब पुरानी पेंशन योजना को बहाल क्यों नहीं किया गया?

हिमाचल सरकार में मौजूदा समय में दो लाख से अधिक कर्मचारी हैं। इसके अलावा करीब दो लाख सेवानिवृत कर्मचारी हैं। केवल 55 लाख मतदाताओं वाले राज्य में यह संख्या बहुत ही निर्णायक है।

हिमाचल पुलिस सेवा के एक कर्मचारी ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया, "मैं यह नहीं कह सकता कि कौन जीत रहा है, लेकिन सरकारी कर्मचारियों के लिए ओपीएस सबसे बड़ा मुद्दा है। मुझे लगता है कि ज्यादातर सरकारी कर्मचारी और उनके आश्रित इसी आधार पर वोट करेंगे।"

उल्लेखनीय है की ओपीएस के तहत सरकारी कर्मचारी को अंतिम वेतन की 50 प्रतिशत राशि बतौर पेंशन मिलती थी। अब नयी पेंशन योजना के तहत कर्मचारी को वेतन और डीए का कम से कम 10 फीसदी पेंशन कोष में देना होता है। सरकार इस कोष में 14 फीसदी का योगदान देती है। बाद में इस राशि को सिक्योरिटी, स्टॉक में निवेश किया जाता है और मूल्यांकन के आधार पर पेंशन तय होती है।

स्थानीय मतदाताओं का कहना है कि ओपीएस के साथ ही कांग्रेस ने महिलाओं को प्रतिमाह 1500 रुपये देने, सेब बागानों को सब्सिडी देने, एक लाख सरकारी नौकरियां देने सहित कई अन्य वादे किये हैं।

प्रियंका गांधी वाद्रा के नेतृत्व में कांग्रेस लगातार इन्हीं मुद्दों पर केंद्रित चुनाव अभियान चला रही है।

दूसरी तरफ, भाजपा के लिए सबसे बड़ा चुनावी हथियार प्रधानमंत्री मोदी की लोकप्रियता है। शायद यही वजह है कि भाजपा ने राजधानी शिमला और आसपास के इलाकों को प्रधानमंत्री के पोस्टर से पाट दिया है।

भाजपा ने उत्तराखंड की तरह यहां भी समान नागरिक संहिता लागू करने का वादा करके चुनावी माहौल अपने पक्ष में करने की कोशिश में है। साथ ही सत्तारूढ़ पार्टी बार-बार जनता को यह बताने का प्रयास कर रही है कि "डबल इंजन की सरकार ' को बनाये रखने में ही हिमाचल प्रदेश का हित है।

हिमाचल प्रदेश की सभी 68 विधानसभा सीटों के लिए 12 नवंबर को मतदान होगा और मतों की गिनती आठ दिसंबर को होगी।