रांची, 22 अक्टूबर (भाषा) झारखंड के मुख्यमंत्री हेमन्त सोरेन ने गत 21 सितंबर को झारखंड उच्च न्यायालय द्वारा जिला नियोजन नीति रद्द किए जाने के आदेश के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर करने के प्रस्ताव को बृहस्पतिवार को स्वीकृति दे दी।


उच्च न्यायालय ने अपने इस आदेश में राज्य सरकार की जिला नियोजन नीति एवं उस पर आधारित शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया को रद्द कर दिया था जिससे राज्य के 13 अनुसूचित जिलों में कम से कम दस हजार नवनियुक्त शिक्षकों की नौकरी अधर में लटक गयी है।

राज्य सरकार की एक विज्ञप्ति में बताया गया है कि राज्य के अनुसूचित/ गैर अनुसूचित जिलों के जिला स्तर के पदों पर नियुक्तियों में संबंधित जिले के स्थानीय निवासियों को एवं राज्यस्तरीय वर्ग-तीन एवं वर्ग-चार के पदों पर नियुक्तियों में झारखंड राज्य के स्थानीय निवासियों को प्राथमिकता देने सबंधी अधिसूचना को सोनी कुमारी एवं अन्य द्वारा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुनौती दी गई थी, जिसके आधार पर उच्च न्यायालय ने उपर्युक्त आदेश दिये थे।

21 सितंबर को झारखंड उच्च न्यायालय की पूर्ण पीठ ने एक ऐतिहासिक फैसले में झारखंड सरकार की जिला नियोजन नीति 2016 को निरस्त कर दिया था जिसमें स्थानीय लोगों के लिए तृतीय एवं चतुर्थ संवर्ग के रोजगार 100 प्रतिशत आरक्षित थे। इस नीति पर आधारित 18000 अध्यापकों की नियुक्ति प्रक्रिया को भी न्यायालय ने 13 अनुसूचित जिलों में रद्द कर दिया था जिससे कम से कम दस हजार नवनियुक्त शिक्षकों का भविष्य अधर में लटक गया था।

झारखंड उच्च न्यायालय की न्यायमूर्ति हरीशचंद्र मिश्रा, न्यायमूर्ति एस चंद्रशेखर और न्यायमूर्ति दीपक रोशन की पूर्ण पीठ ने इस मामले में बहस पूरी होने के बाद 21 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था और उसने 21 सितंबर को यह ऐतिहासिक सुनाया।

झारखंड सरकार द्वारा बनायी गयी ‘स्थानीयता एवं रोजगार नीति 2016’ 14 जुलाई, 2016 को राज्य में लागू हुई थी। इस नीति के तहत राज्य के 24 जिलों में से 13 अनुसूचित जिलों में तृतीय एवं चतुर्थ संवर्ग के 100 प्रतिशत रोजगार उसी जिले के स्थानीय लोगों के लिए दस वर्षों के लिए आरक्षित कर दिये गये थे।

इसी नीति के आधार पर राज्य सरकार ने सभी 24 जिलों में 18000 हाईस्कूल के अध्यापकों की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया प्रारंभ की थी। इस नीति के चलते 1985 से पहले के राज्य के निवासी ही 13 अनुसूचित जिलों में अपने-अपने जिलों में शिक्षक बनने के लिए आवेदन देने के योग्य थे।

इस मामले में प्रार्थी सोनी कुमारी एवं अन्य ने राज्य सरकार की नियोजन नीति और इसके आधार पर शिक्षक नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

न्यायालय के इस आदेश के चलते 18000 में से कम से कम दस हजार तक शिक्षकों की नियुक्ति की प्रक्रिया रद्द हो गयी है और अब वहां नये सिरे से संविधान सम्मत बदले नियमों के तहत ही नियुक्ति की प्रक्रिया प्रारंभ हो सकेगी।

न्यायालय ने अपने 21 सितंबर के आदेश में 11 गैर अनुसूचित जिलों में शिक्षकों की चल रही नियुक्ति प्रक्रिया में कोई हस्तक्षेप नहीं किया और उसे वैध माना था।

इससे पूर्व इस मामले की सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने राज्य की नियोजन नीति को सही ठहराते हुए न्यायालय में कहा था कि झारखंड की कई परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही यह नीति बनाई गई थी।