खूंटी, 20 अप्रैल (हि.स.)। हमेशा सुर्खियों में रहनेवाली जनजातियों के लिए सुरक्षित संसदीय सीट की विभिन्न विशेषताओं में एक खास है कि इस लोकसभा क्षेत्र के सभी छह विधानसभा क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुषों की अपेक्षा अधिक है। खूंटी, गुमला, सिमडेगा, गुमला, रांची और सरायकेला-खरसावां इन छह जिलो में फैले खूंटी लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या है।

13 लाख नौ हजार 677। इनमें महिला मतदातओं की संख्या 6,66,584 और पुरुष वोटरों की संख्या है 643087। इस संसदीय क्षेत्र के छह विधानसभा क्षेत्र में भी महिला वोटरों की संख्या पुरुषों से अधिक है। एक भी विधानसभा क्षेत्र ऐसा नहीं है, जहां पुरुष मतदाताओं की संख्या महिलाओं से अधिक है। यही कारण है कि प्रत्याशियों की जीत-हार में महिलाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण है। इसको लेकर हर राजनीतिक दल चुनाव के दौरान महिला मतदाताओं का अधिक तवज्जो देते हैं।

जिला जनसंपर्क कार्यालय खूंटी से मिली जानकारी के अनुसार खरसावां विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या 109761 है। वहीं इस सीट पर महिला वोटरों की संख्या 111383 है। तमाड़ विधानसभा क्षेत्र के कुल 215101 में पुरुष मतदाता 107358 है, जबकि महिलाओं की संख्या107743 है। इसी प्रकार तोरपा में महिला वोटरों की संख्या 1000487 है, जबकि 978122 पुरुष मतदाता हैं। खूंटी विधानसभा क्षेत्र में वोटरों की कुल संख्या 223658 है। इनमें पुरुष मतदाता 108771 है, वहीं महिला वोटरों की संख्या 114884 है। सिमडेगा विधानसभा क्षेत्र मे 117062 पुरुष वोटरों की तुलना में महिला मतदातओं की संख्या 124800 है। इसी जिले के कोलेबिरा विधानसभा क्षेत्र के कुल 210300 में 197287 महिला मतदाता हैं, जबकि पुरुष वोटरों की संख्या 103013 है।



17 संसदीय चुनाव में सिर्फ एक बार महिला को मिला संसद पहुंचने का मौका



खूंटी संसदीय क्षेत्र में भले ही महिला मतदाताआं की संख्या पुरुषों की तुलना में अधिक हो, पर इस संसदीय सीट पर अब तक हुए 17 लोकसभा चुनावों में मात्र एक महिला को अब तक संसद पहुंचने का का मौका मिला है और वे थीं बिहार की पूर्व मंत्री और बिरसा कॉलेज खूंटी की प्राचार्या सुशीला केरकेट्टा। सुशीला केरकेट्टा ने 2004 के लोकसभा चुनाव में छह बार के सांसद कड़िया मुंडा को मात दी थी। उसके पहले या बाद में किसी महिला को लोकसभा पहुंचने का मौका नहीं मिला। वैसे कांग्रेस ने सुशीला केरेट्टा के पहले या बाद में किसी भी पार्टी ने महिला उम्मीदवारों को टिकट नहीं दिया। भाजपा ने भी अब तक किसी महिला प्रत्याशी को मैदान में नहीं उतारा है। वैसे दयामनी बारला ने 2009 के लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी के टिकट पर भाग्य आजमाया था, लेकिन वह अपनी जमानत तक बचा नहीं पाई थी। ऐसा नहीं है कि इस ससंदीय सीट से अन्य महिला प्रत्याशियों ने चुनाव नहीं लड़ा हो, पर किसी बड़े राजनीतिक दल के टिकट पर उन्हें किस्मत आजमाने का मौका नहीं मिला।

हिन्दुस्थान समाचार/ अनिल