हैदराबाद : भारत के प्रधान न्यायाधीश एन. वी. रमण ने रविवार को कहा कि देश में विधि स्नातक कानूनी समस्याओं पर केवल सैद्धांतिक तरीके से विचार करने के अभ्यस्त हैं। न्यायमूर्ति रमण ने ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की आवश्यकता पर बल दिया, जो अधिक व्यावहारिक हों।

न्यायमूर्ति रमण ने यहां नालसर लॉ यूनिवर्सिटी के 18वें वार्षिक दीक्षांत समारोह में कहा कि स्नातक करने वाले छात्रों को आगाह किया कि ‘कोर्ट रूम’ वैसे नहीं होते, जैसा फिल्मों या ‘मूट कोर्ट’ में दिखाए जाते हैं, बल्कि वे ‘‘संकरे, गंदे हो सकते हैं और ऐसा भी हो सकता है कि न्यायाधीश के पास एक पंखा भी ना हो।’’

न्यायमूर्ति रमण ने कहा, ‘‘मैं देखता हूं कि छात्र कानूनी समस्याओं पर केवल सैद्धांतिक तरीके से विचार करने के अभ्यस्त हैं। ऐसे पाठ्यक्रम शुरू करने की तत्काल आवश्यकता है, जो अधिक व्यावहारिक हों और छात्र जमीनी स्तर पर लोगों से संवाद करने के साथ ही उनके मुद्दों के बारे में अवगत हो सकें।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐसा लगता है कि निचली अदालत के महत्व को पूरी तरह से नजरअंदाज करते हुए केवल उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय में वकालत करने का आकर्षण है।’’

उन्होंने कानून के स्नातकों से आह्वान किया कि वे उच्च न्यायालय और उच्चतम न्यायालय में जाने से पहले निचली अदालत के स्तर पर अनुभव प्राप्त करने पर विचार करें। उन्होंने कहा कि सबसे अधिक संख्या में मामले निचली अदालतों में लंबित रहने के कारण वहां विशेषज्ञ अधिवक्ताओं की मांग और आवश्यकता दोनों है। उन्होंने छात्रों से कहा कि उन्हें मादक पदार्थों से दूर रहना चाहिए।