श्रीमती सोनिया गाँधी और राजयोग

पं.सतीश शर्मा, एस्ट्रो एडिटर

मेरा अगस्त, 1999 में लिखा हुआ एक लेख बहुत प्रसिद्ध हुआ था, जिसका सार यह था कि श्रीमती सोनिया गाँधी की कर्क लग्न की कुण्डली में शनि गोचरवश दशम भाव से भ्रमण कर रहे हैं, इसलिए उन्हें राजयोग नहीं मिलेगा। अष्टमेश जब दशम से भ्रमण करते हैं, तो राजयोग, व्यवसाय या नौकरी में खराब समय माना जाता है। ठीक उसी समय वाजपेयी जी की कुण्डली में शनिदेव छठे भाव से गुजर रहे थे, जो कि शत्रुहंता योग बना रहे थे, अब जबकि 2024 में आम चुनाव होंगे, तब सोनिया गाँधी के लिए हानिकारक शनि उनकी कर्क लग्न की कुण्डली के अष्टम भाव से भ्रमण कर रहे होंगे, जो कि उन्हें राजगद्दी प्राप्त नहीं करने देंगे। वैसे भी उनके जन्मकालीन शनि कुण्डली में लग्न में बैठे हैं और वक्री होकर दशम भाव पर दृष्टिपात कर रहे हैं, जिसके कारण उनको स्वयं को गद्दी नशीन होने में बाधक रहे। अब यही शनि फिर सन्  2024 में उनकी कुण्डली में आठवें भाव में बैठकर एक तरफ उनके दशम भाव को प्रभावित करेंगे और उन्हें राजगद्दी प्राप्त नहीं होने देंगे तथा दूसरी ओर पंचम भाव पर दृष्टिपात करके राहुल गाँधी के मार्ग में अवरोध खड़ा करेंगे। आठवें भाव के शनि दूसरे भाव पर भी दृष्टिपात करते हैं, जो कि कुटुम्ब में झगड़े का परिचायक है। इससे संकेत मिलता है कि श्रीमती सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी और प्रियंका गाँधी के मध्य भी कई मामलों में गंभीर मतभेद चल रहे हैं। ज्योतिष की नजर वहाँ तक जाती है, जहाँ के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता।

 

ना केवल यह, बल्कि उनकी जन्म पत्रिका में लाल कृष्ण आडवाणी की तरह ही सूर्य का बल केवल 63 प्रतिशत ही  है। 1999 में जब सोनिया गाँधी जी के नेतृत्व में कांग्रेस आम चुनाव हारी थी तब श्रीमती गाँधी को बुध महादशा में शुक्र अन्तर्दशा चल रही थी। जब वर्ष 2014 में काँग्रेस चुनाव हारी तब श्रीमती सोनिया गाँधी के केतु में शुक्र अन्तर्दशा चल रही थी और अब जब कि 2024 के आम चुनाव होंगे, तब श्रीमती सोनिया गाँधी को शुक्र की महादशा चल रही होगी और चन्द्रमा की अन्तर्दशा। शुक्र की अन्तर्दशाएँ इनके कभी भी अनुकूल नहीं रही, इसीलिए महादशा में भी कोई बड़ी उम्मीद नहीं की जानी चाहिए। लग्न से आठवें शनि वैसे ही सत्ता में बाधक सिद्ध होते हैं।

हम यहाँ राहुल गाँधी की जन्म पत्रिका पर विचार नहीं कर रहे हैं, क्योंकि श्रीमती सोनिया गाँधी के जीवन काल में उनकी जन्म पत्रिका से घटनाओं को तलाश किया जाना बहुत आसान है। आम चुनावों के समय राहुल गाँधी की जन्म पत्रिका में उनकी चन्द्र लग्न से तीसरे शनि चल रहे होंगे जो कि उन्हें दुःसाहस करने और जोखिम लेने की प्रेरणा देते रहेंगे। परन्तु केवल यह उनके प्रधानमंत्री बनने की गारण्टी नहीं है। उनकी मूल कुण्डली में शनि देव नीच राशि में स्थित हैं जिसके कारण उनकी लोकप्रियता में बाधा आई है तथा धनु राशि में पूर्णिमा के चन्द्र पर केतु और मंगल की दृष्टि ने उनकी विचार शृंखलाओं पर प्रश्न चिह्न खड़े किये हैं। कभी उनकी पलायनवृत्ति नुकसानदेह साबित होती है, क्योंकि वे संसद के सत्रों में भी बाहर घूमते पाये गये हैं, तो कभी उनकी अतिसक्रियता आत्मघाती गोल में बदल जाती है। इससे निर्णायक लक्ष्य तक पहुँचने में बाधाएँ  आती हैं व लक्ष्य का पीछा करना मुश्किल हो जाता है।

सोनिया गाँधी की कुण्डली में ज्योतिष के कुछ प्रसिद्ध योग मौजूद है। उन योगों के नाम है- रज्जु योग, पाश योग, महापुरुष योग, सुनफा योग, सम योग, उभयचर योग, पर्वत योग, काहल योग, राजयोग, अवयोग, पामर योग, चन्द्र-मंगल योग तथा हर योग। ऐसा नहीं है कि केवल अच्छे योग ही हों, कई दुर्योग भी हैं। उदाहरण के लिए - लग्नेश चन्द्रमा लग्न से बारहवें बैठे हैं और पापकर्तरि में हैं अर्थात् राहु और शनि से घिरे हुए बैठे हैं और मंगल से दृष्ट हैं। इस कारण से कुण्डली में शुभत्व तो है परन्तु सर्वश्रेष्ठ फल नहीं दे पाई। ख्याति और कुख्याति साथ-साथ चलती है। उनके धनी होने को लेकर कोई न कोई चचाएँ चलती ही रहती हैं। सर्वश्रेष्ठ राजयोग बनाने वाला केन्द्रत्रिकोण सम्बन्ध भी बहुत अधिक पुष्ट नहीं है। अब जबकि आम चुनाव हो रहे होंगे राहुल गाँधी राहु महादशा की बृहस्पति अन्तर्दशा में चल रहे होंगे, जो कि आंशिक रूप से चाण्डाल योग जैसा है। उधर सोनिया गाँधी की जन्म पत्रिका में शुक्र महादशा में चन्द्रमा की अन्तर्दशा चल रही होगी जो कि उनके अनुकूल नहीं है।

राहुल गाँधी की जन्म पत्रिका में एक सबसे बड़ा दोष केमदु्रम योग का होना है। उनके जन्मकालीन चन्द्रमा केतु के नक्षत्र में हैं, केतु से दृष्ट हैं, परन्तु चन्द्रमा के दोनों ओर कोई भी ग्रह नहीं है। यद्यपि चन्द्रमा से सप्तम भाव में मंगल और सूर्य की उपस्थिति से केमदु्रुम योग में कमी आई है परन्तु उनकी सफलता सीमित रह गई है। यह आश्चर्यजनक है कि उनके प्रचार पर खरबों रुपये खर्चा होने के बाद भी आशातीत सफलता क्यों नहीं मिल पाई है? जब कि श्रीमती सोनिया गाँधी के प्रचार तंत्र पर इतना खर्चा कभी भी नहीं हुआ। वे चुपचाप काम करने की आदी रही हैं और वही उनकी शक्ति भी रही है। अगर सोनिया गाँधी सक्रिय नहीं रहती तो गाँधी परिवार का पतन बहुत पहले ही हो गया होता। मारकशक्ति भी प्रियंका गाँधी वाड्रा ने राहुल गाँघी से अधिक पाई है। उनकी तर्कशक्ति भ्रमित नहीं है। परन्तु राजनीति में बड़ी सफलता के लिए आपको कहीं बहुत अधिक गुणों की आवश्यकता पड़ती है। अगर आपको प्रधानमंत्री बनना है तो आपमें हजारों गुणों का समावेश होना चाहिए तथा जन सामान्य में, सभी वर्गों में अत्यधिक लोकप्रियता होनी चाहिए। यदि आम जनता में नकारात्मक छवि बनने लगे तो आपको अधिक परिश्रम करना होगा और अधिक लोकप्रिय होना होगा।

जहाँ तक श्रीमती सोनिया गाँधी का सवाल है, अतिशक्तिशाली जन्म पत्रिका होते हुए भी सूर्य का अत्यधिक कमजोर होना और शनि का अत्यधिक क्रुद्ध होना इस जन्म में उनकी महत्त्वाकांक्षाओं को पूरा नहीं होने देगा।

 

अथ चाणक्य उवाच

पुष्पार्थी सिंचति शुष्कतरुम्।

पुष्प की इच्छा करने वाला सूखे पेड़ को नहीं सींचता।

अद्रव्यप्रयत्नो बालुका क्वाथनादनन्यः।

अद्रव्य के लिए प्रयत्न करना बालू को उबालने के समान निरर्थक होता है।

पेड़ या पौधो में फूल तभी आते हैं जब वह हरा-भरा हो। सूखे पेड़-पौधे चाहे जितना सींचा जाये, उसमें फूल नहीं आ सकते। इसी प्रकार प्रयत्न उसी कार्य में सफल होता है जिसमें सफलता की संभावना हो। इसलिए कोई प्रयत्न करने से पहले यह देख लेना चाहिए कि उसके सफल होने की आशा या संभावना है या नहीं। बिना सोचे-विचारे कोई काम हाथ में लेना मूर्खता ही कहा जा सकता है।

राज-काज में तो इस बात पर बहुत ध्यान देने की जरूरत है कि भावना के वशीभूत होकर या क्षणिक राजनीतिक लाभ उठाने के खयाल से ऐसे काम शुरु  न किये जायें जिनका कोई फल न निकलता हो। अन्त में परिणामहीन कार्य को हाथ में लेने से उसके लिए किया गया प्रयत्न व्यर्थ हो जाता है और राष्ट्र को हानि उठानी पड़ती है।

अद्रव्य के लिए प्रयत्न इसी को कहा गया है। ‘अद्रव्य’ के तीन अर्थ किये जा सकते हैं। एक-वस्तु जो वास्तविक न हो अथवा फल देने वाली न हो। दो-कुवस्तु यानी बुरी चीज। तीन-कुद्रव्य अर्थात् अनुचित उपायों से कमाया हुआ धन। ऐसे धन को कलुषित धन या कालाधन कहते हैं। इन तीनों ही अद्रव्यों के लिए किया गया प्रयत्न बालू को उबाल कर भात रांधने की चेष्टा के समान मूर्खतापूर्ण होता है। इसी बात को बालू में से तेल निकालना भी कहते हैं।

किसी कल्पित अवास्तविक वस्तु के लिए प्रयत्न करना, बुरी चीज हासिल करने के लिए प्रयत्न करना और कालाधन जमा करने के लिए प्रयत्न करना, ये तीनों ही प्रयत्न अन्त में पछतावे का कारण होते हैं।

     न महाजन हासः कर्त्तव्यः।

     महाजनों का उपहास नहीं करना चाहिए।

     न नर्म परीहासः कर्त्तव्यः।

     अश्लील तथा अशिष्ट परिहास नहीं करना चाहिए।

शुद्घ आचरण वाले मनुष्य को महाजन कहते हैं। महाभारत में कहा हैः- महाजनो येन गतः पन्थाः, अर्थात् महाजन जिस मार्ग पर गये हैं, उसी का अनुसरण करना चाहिए। परन्तु देखने में आता है कि सदाचारी तथा धर्मानुसार जीवन व्यतीत करने वालों का बहुत लोग मजाक उडाते हैं। उन्हें ‘आदर्शवादी’ कहते हैं और उनका उपहास करते हैं। यह अनुचित है। महाजन सदा पूज्य तथा सम्माननीय होते हैं। उनका उपहास करने की बजाय उनका अनुसरण करना चाहिए।

अश्लील और अशिष्ट हंसी-ठट्ठा नर्महास कहलाता है। हास-परिहास यानी हंसी-दिल्लगी की भी एक सीमा होती है। शिष्ट हास्य तो वाणी का भूषण होता है। इसके प्रयोग से बातचीत रोचक हो जाती है। अशिष्ट हास-परिहास असभ्यता का द्योतक है और इससे कभी कभी लडाई झगडे भी हो जाते हैं।

     कार्यसम्पद निमित्तानि सूचयन्ति।

     कार्य की सफलता उसके निमित्तों की सूचक होती है।

     नक्षत्रापदि निमित्तानि विशेषयन्ति।

     निमित्त नक्षत्रों से भी अधिक महत्व रखते हैं।

     त्वरितस्य नक्षत्रपरीक्षा।

     कार्य को शीघ्र निबटाने वाला नक्षत्रों की परीक्षा नहीं करता।

भारतीय दर्शन के अनुसार कार्य तथा कारण का अटूट संबंध है। कोई भी कार्य कारण के बिना नहीं हो सकता। अंग्रेजी में कार्य को ‘इफैक्ट और कारण को ‘कॉज’कहते हैं। प्रत्येक कार्य का कोई न कोई कारण अवश्य होता है। कारण तीन प्रकार के होते हैं- कर्ता, उपादान और निमित्त। कोई भी कार्य हो, उसे करने वाला अर्थात कर्ता होना चाहिए। कार्य के लिए आवश्यक वस्तुओं तथा साधनों को उपादान कहते हैं। कार्य के लिए जो उपाय किया जाता है, वह निमित्त होता है। इसके लिए मिट्टी के घड़े का दृष्टान्त दिया जाता है। कुम्हार चाक पर मिट्टी का लोंदा रखकर और चाक को घुमाकर घड़ा बनाता है। इस प्रकार घड़ा रूपी कार्य के तीन कारण बन जाते हैं। कुम्हार कर्ता है, मिट्टी उपादान है और चाक को घुमाने वाला डंडा निमित्त है। चाक को घुमाये बिना घड़ा नहीं बन सकता।

गीता में आख्यान है कि जब अर्जुन ने कृष्ण से कहा कि मैं युद्घ में अपने स्वजनों को नहीं मारना चाहता, तब कृष्ण ने उससे कहाः ‘निमित्तमात्रं भव सव्यसाचिन्’अर्थात हे अर्जुन, ये सब तो मरने वाले ही हैं, तू तो इनकी मृत्यु का निमित्त बन जा। गीता में ही निमित्त शब्द का प्रयोग लक्षण के अर्थ में भी हुआ है। अर्जुन ने कृष्ण से कहा था, ‘निमित्तानि च पश्यामि विपरीतानि केशव’, अर्थात् हे कृष्ण मुझे विपरीत लक्षण दीख रहे हैं।

मनुष्य जो कर्म किसी उद्देश्य से करता है उसे नैमित्तिक कर्मं कहते हैं, क्योंकि यह जीवन यात्रा पूरी करने का निमित्त होता है।

चाणक्य के इन सूत्रों में निमित्त शब्द का प्रयोग निमित्त कारण के लिए ही प्रयुक्त हुआ है। कार्य सफल तभी होता है जब उसके उपयुक्त निमित्त कारण हों। इसलिए कार्य की सफलता यह बताती है कि उसके निमित्त कारण सही थे, अर्थात उसके लिए जो उपाय किये गये वे समीचीन थे।

जब किसी कार्य के निमित्त कारण समीचीन हों, तब वह कार्य अवश्य सफल होता है। इसलिए ग्रह-नक्षत्रों के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए अर्थात् यह नहीं देखना चाहिए कि ग्रह नक्षत्रों के अनुसार समय अनुकूल है या नहीं। खास तौर पर ऐसी अवस्था में जब कोई काम जल्दी पूरा करना हो, तब तो नक्षत्रों का हिसाब लगाने में समय बिल्कुल नष्ट नहीं करना चाहिए।

 

संक्रान्ति विचार

जिस दिन सूर्य एक राशि को छोडकर दूसरी राशि में प्रवेश करता है, उस दिन को संक्रान्ति दिवस कहते हैं। एक वर्ष में बारह संक्रान्तियाँ होती है। प्रायः लोग मकर संक्रान्ति को ही संक्रान्ति दिवस संक्रान्ति दिवस समझ रहे हैं, परन्तु हर माह सूर्य का संक्रमण होता रहता है उस संक्रमण दिवस को ही संक्रान्ति दिवस कहते हैं। जिस चान्द्रमास मास शुक्ल पूर्णिमा तक संक्रान्ति नहीं होती है वह मास अधिकमास  संज्ञक हो जाता है। जिस मास में दो बार सूर्य का संक्रमण हो जाता है, उसे क्षय मास कहते हैं। जिस साल क्षय मास होता है उस साल अधिक मास भी होता है। क्षय मास कार्तिक, मार्गशीर्ष और पौष में से ही कोई एक होता है। विक्रम संवत् 2020 में क्षय मास हुआ तथा 2039 में भी क्षय मास हुआ। यह सब सूर्य-चन्द्रमा की गति से प्रभावित होकर होता है। इसका कारण निर्धारित सिद्घान्त ज्योतिष में हुआ है जिसके लिए आप सूर्य सिद्घान्त, ग्रहलाघव, केतकी ज्योतिर्गणितम् पढ सकते हैं।

मेष संक्रान्ति से उत्तर गोल प्रवेश तथा तुला संक्रान्ति से दक्षिण गोल प्रवेश होता है अतः ये दोनों विषुवती संक्रान्ति कहलायेगी।

कर्क संक्रान्ति से दक्षिणायन प्रवेश तथा मकर संक्रान्ति से उत्तरायण प्रवेश होता है अतः ये दोनों अयन संक्रान्ति कहलाती है।

दक्षिणायन में 178 दिन तथा उत्तरायण में 187 दिन रहते हैं। इस प्रकार उत्तरायण 9 दिन बडा है।

संक्रान्ति के संक्रमण का समय पंचांग में लिखा रहता है। उस समय से 16 घटि पहले तथा 16 घटि बाद तक पुण्यकाल रहता है। एक घटि 24 मिनट की होती है। संक्रान्ति काल में स्नान-दान-श्राद्घ कर्म का विशेष पुण्य कहा गया है।

यदि अर्द्घ रात्रि से पहिले संक्रान्ति हो तो पहिले दिन तथा अर्द्घरात्रि के बाद संक्रान्ति हो तो अगले दिन पुण्य काल रहता है। यदि ठीक अर्द्घरात्रि में संक्रान्ति हो तो पूर्व और अगले- दोनों दिन पुण्य काल कहा गया है।

अयनांश प्रभाव से आजकल 14 जनवरी को मकर संक्रान्ति होती है। किसी वर्ष इसका पुण्यकाल 15 जनवरी को मनाया जाता है। इसका कारण यह है कि सूर्यास्त के बाद संध्या बीत जाने पर मकर संक्रमण हो तो दूसरे दिन पुण्य काल कहा गया है। इस कारण यह पर्व 15 तारीख में मनाया जाता है।

कर्क संक्रान्ति सूर्योदय से पहिले संक्रमित हो तो पहिले दिन पुण्यकाल मनाया जाता है।

प्रत्येक व्यक्ति को अपने जन्म नक्षत्र का ज्ञान रहना चाहिए। यदि सूर्य संक्रमण जन्म नक्षत्र पर हो रहा है तो वह मास जातक के लिए रोग, क्लेश, दुःखदायी एवं धनहानि करने वाला होता है। संक्रान्ति के पुण्यकाल पर स्नान-दान-पुण्य कार्य करने से कुप्रभाव कम किया जा सकता है।

संक्रान्ति दिवस पर सूर्य 29 अंश से अधिक तथा 0 अंश के मध्य रहने के कारण कमजोर होकर के अपने से संबंधित भाव को कमजोर कर दिया करता है। आप ही आप अपने कारक फलों में न्यूनता रहने लग जाती है। ऐसी स्थिति में सूर्य नमस्कार, अर्ध्यदान, माणक धारण, गायत्री मंत्र जप नियमित करते रहने से सूर्य में सुधार होता रहता है।

संक्रान्ति का पहिला दिन सौर मासान्त दिवस रहने के कारण शुभ कर्म में त्याज्य है। पुण्यकाल में शुभारंभ नहीं किया जाना चाहिए।

भद्रा -

‘न कुर्यान्मंगलं विष्टचां जीवितार्थी कदाचनः’

जो व्यक्ति जीवित रहना चाहे तो भद्रा में कभी शुभकर्म शुरु न करें। ऐसे वाक्यों के भावार्थ ग्रहण करने चाहिए। भद्रा को महाअशुभ काल माना गया है अतः शुभारम्भ में टाल देना ही चाहिए।

चन्द्र राशि के अनुसार भद्रा की स्थिति स्वर्ग, पाताल और मृत्युलोक में कही गई है यथा :-

. स्वर्ग में : मेष, वृष, मिथुन और वृश्चिक के चन्द्रमा में।

. पाताल में : कन्या, तुला, धनु और मकर के चन्द्रमा में।

. मृत्यु लोग में : कर्क, सिंह, कुंभ और मीन के चन्द्रमा में।

मृत्युलोक ही पृथ्वी लोक है। इसलोक का भद्रानिवास सर्वथा त्याज्य है। स्वर्गलोक की भद्रा धन और धान्य देने वाली है यथा पाताल लोक की धन देने वाली है अर्थात् शुभगुण रखती है। कुंभ, मीन, कर्क और सिंह राशि पर चन्द्रमा हो तो ऐसी भद्रा में कार्यसिद्घि नहीं हो पाती है। सर्वथा त्याज्य है।

 

शरीर लक्षण

स्वर : प्रत्येक व्यक्ति की ध्वनि उच्चारण क्षमता का अपना विशेष ढंग होता है, जिसका प्रभाव चाहे वह अच्छा हो या बुरा सुनने वालों पर अवश्य पडता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि शरीर की लगभग 80 नसें जब एक साथ एक दूसरे से संबंध करती हैं तो एक शब्द उच्चरित होता है।

स्वर का मानव जीवन में अपना महत्त्व है। मानव के सभी क्रिया कलापों का मूल मन है। मन के अनुसार वाणी प्रस्फुटित होती है अतः यह तत्त्व स्वभाव का सबसे बड़ा परिचायक है।

मुख सामुद्रिक के अन्तर्गत स्वर के प्रमुख विभेदों से निम्न फल होना संभावित है।

अति तीव्र स्वर : स्वर में प्रायः वे लोग बोलते हैं जो या तो बहरे हों या सुनने वाले का ध्यान अपनी ओर केन्दि्रत करना चाहते हों या हठ पूर्वक अपने अधूरे ज्ञान को दूसरों पर थोपना चाहते हों या फिर किसी अन्य को सुनना न चाहते हों।

स्वर अनुनादी : बोलने में कुछ ऐसा नाद होता है जो निरन्तर तीव्रता से प्रस्फुतित होता है कि प्रथम स्वर स्पष्ट होते होते दूसरे उसे ढक लेता है। ऐसे जातक की बात करने में अधैर्यता का स्वर की अस्पष्टता साफ प्रकट होती है।

यह इस बात का प्रतीक है कि ऐसा जातक बात को स्पष्ट करने में असमर्थ है। ऐसे जातक किसी रहस्य को गोपनीय रखने में असमर्थ होते हैं।

जर्जरित स्वर : ऐसे स्वर में कर्कशता एवं टूटापन होता है। ऐसे स्वर सुनने पर ऐसा लगता है जैसे कोई धातु आपस में रगड़ खा रही हो। स्वर भी कानों को चुभते हुए लगते हैं। ऐसे जातक क्लेशप्रिय, दुःखी, झगडालू लक्ष्यहीन होते हैं।

दुन्दुभि स्वर : ऐसे स्वर में एक बुलन्दी होती है। इस गूंज से ऐसा लगता है मानो कोई शेर गर्ज रहा हो। इस स्वर का आदि मध्य और अन्त तीनों सन्तुलित होते हैं।

ऐसे जातक संयमयुक्त, विद्वान, अध्ययनरत, चिन्तनप्रिय, गंभीर, धैर्यवान, उन्नत, उदार चरित्र के होते हैं।

निम्न स्वर : ऐसे स्वर में भग्रता होती है। प्रायः रुक-रुककर हकलाकर, असन्तुलित बोलते है। ऐसे जातक अनाकर्षक, कुण्ठित, उथले, निरर्थक होते हैं।

उपरोक्त र्दुगणों में से एक या अधिक दुर्गुणयुक्त स्वर प्रायः अविकसित बुद्घि, अज्ञान, संकुचित प्रवृत्ति, निर्धनता, मुर्खता, धूर्तता, असफलता के सूचक होते है।

गंभीर, सन्तुलित स्वर मानव मस्तिष्क की उच्च कोटि का सूचक है। स्ति्रयाँ प्रायः कुछ मृदु, मंद एवं सरल स्वर में बोलती हैं, क्योंकि उनके स्वभाव में स्नेह, श्रद्घा, समर्पण, दया का भाव अधिक होता है।

यदि नारी स्वर में उक्त सामान्य स्वर की अपेक्षा बुलन्दी हो तो उस नारी में सम्भवता अहं, अनुशासन, नेतृत्व, पुरुषोचित गुण होते हैं। यदि सामान्य से निम्नस्तर का स्वर हो तो भ्रम, कलहप्रिय वाचालता, आत्मप्रशसा, दम्भ, मुर्खता आदि दुर्गण हो सकते हैं।

शयन मुद्रा -

आपके सोने का तरीका आपके विषय में बहुत कुछ बतला देता है। आपके सोने के तरीका जैसा भी है वह आपके क्रिया-कलापों, मन की बातों, आदतों एवं आपके विषय में सब कुछ सही बतला देता है।

पाँवों को कसकर सोना : अगर आप सोते समय पांवों को अत्यन्त जकड़ लेते हैं तब निश्चय ही आपका जीवन संघर्षपूर्ण रहेगा। जरा जरा सी बातों के लिए आपको कठोर से कठोर परिश्रम करना होगा। जीवन में उथल पुथल मची रहेगी।

शरीर सिकोडकर सोना : निःसन्देह जातक डरपोक किस्म का है। असुरक्षा जैसी भावना सदैव रहती है। ऐसे मनुष्य अजनबियों से कतराते हैं। घर से बाहर ज्यादा देर तक नहीं रह सकते। सदैव अनजानासा भय अनुभव होता है वह खुलकर किसी और से अपनी बात नहीं कहते।

पेट के बल सोना : यदि पेट के बल सोना अच्छा लगता है तो निःसन्देह ऐसे जातक को अनजाने भय की अशंका रहती है। ऐसे जातक कोई भी खतरा उठाने के लिए तैयार नहीं होते। जातक अपनी कमियों को जानते हुए भी न तो दूर करते है न ही किसी को बताते है।

शरीर ढक कर सोना : ऐसे जातक कायर, डरपोक किस्म के होते है यह अधिक संघर्ष, मेहनत नहीं कर सकते। ये हर वस्तु सहज ही मिलने की इच्छा रखते है। कान भरना या इधर की बात उधर करना सहज ही कर लेते है। अकेलापन पसन्द है व अधिक लोगों को या मेला आदि में जाना पसन्द नहीं करते। ये प्रायः स्वार्थी किस्म के होते हैं।

सीधे सोना : यदि सीधे लेट के ही नींद आये तो ऐसे जातक निड़र, आत्मविश्वासी होते है। ये प्रभावशाली व्यक्तित्व के होते हैं। ये संकट के समय धैर्य प्रदर्शित करते है वह अपने भुजबल से काम करने में अधिक विश्वास रखते है। समस्याओं का समाधान करना भी इन्हें आता है।

करवट लेकर सोना : ऐसे जातक विपरीत परिस्थितियों में समझौता कर लेते है। सबका आदर करते है किन्तु अपने निजी मामलों में दूसरे का हस्तक्षेप पसन्द नहीं। ये प्रायः स्वच्छ वस्त्र पहनना व प्रसन्न रहना पसन्द करते है। उन्नतिशील रहते है। कर्म में विश्वास रखते है।

टाँग पर टाँग रखकर सोना : ऐसे जातक सन्तुष्ट, सहनशील तृप्त रहते है। ये दूसरों की भलाई अधिक करते है। दूसरों को कष्ट न हो, दूसरे प्रसन्न रहे यह सदैव सोचते रहते है। इनका जीवन बडे अराम से चलता है।