वास्तु सर्वेक्षण

शहर के बीच में नदी - अग्नि वर्षा होगी ही

पं. सतीश शर्मा, एस्ट्रो साइंस एडिटर, नेशनल दुनिया

चित्तौड़ में महारानी पद्मिनी के महल के ठीक दक्षिण में पानी का जलाशय जब मैंने देखा तो मुझे वास्तुशास्त्र के इस नियम की पुष्टि मिल गई कि किसी भी मकान के दक्षिण में जल स्त्रियों को कष्ट देता है। वर्ष 2003 में भारत के प्रसिद्ध बिड़ला समूह के द्वारा प्रायोजित उस कार्यक्रम में उनकी सीमेन्ट फैक्ट्री के प्रेसीडेन्ट श्री चन्दा ने मुझसे आग्रह किया था कि सभा में चित्तौड़ के किले पर सवाल जरूर पूछे जाएंगे। चित्तौड़ की बर्बादी के कारण जरूर पूछे जाएंगे। क्यों नहीं चित्तौडग़ढ़ के किले का सर्वेक्षण किया जाए? हम लोग सुबह पहले चित्तौड़ के किले में इस दृष्टिकोण से चले गये। वापसी में मैंने किले और नगर के बीच में बहती हुई गम्भीरी नदी पर भी ध्यान दिया। मेरी शोध वृत्ति ने इस तथ्य को सर्वेक्षण का एक बिन्दु बना लिया, जिसे मैंने बाद में दुनिया के कई शहरों के बीच में बहने वाली नदी के परिणामों का अध्ययन करने में प्रयुक्त किया।

जर्मनी का मेंज (Mainze) शहर जिसके बीचों-बीच से यूरोप की प्रसिद्ध राइन नदी गुजरती है, में मुझे कई बार जाने का अवसर मिला। यह शहर द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र राष्ट्रों की बमबारी से बर्बाद हो गया था। लंदन शहर के बीचों-बीच भी थेम्स नदी बहती है। हिटलर ने द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान खूब बमबारी की थी और वह प्रधानमंत्री चर्चिल के आवास तक पर बमबारी करने की स्थिति में पहुँच गया था। सद्दाम हुसैन के शासन के समय बगदाद शहर पर भारी बमबारी हुई। टिगरिस नदी बगदाद के बीचों-बीच बहती है। अमेरिका और मित्र देशों की सेनाओं ने बगदाद पर बहुत ज्यादा बमबारी की थी। बगदाद शहर के इंच-इंच पर बम बरसाये गये थे। शहर के बीच स्थित नदियों के आधार पर मैंने बगदाद के पतन की भविष्यवाणी कर दी थी, जो प्रसिद्ध अखबारों में छपी। जापान का शहर नागासाकी जिस पर परमाणु बम गिराया गया, के बीचों-बीच बड़ी झील है और बहुत बड़ी नदी तो नहीं, वहाँ से निकल कर समुद्र में गिरती हैं। हिरोशिमा पर भी परमाणु बम गिराया गया था। जिस जगह एटम बम गिराया गया था, वहाँ पर एक एटॉमिक बम डोम बना हुआ है। शहर के बीचों-बीच से ओटा नदी गुजरती है जो कई शाखाओं में विभक्त होकर समुद्र में जा मिलती है। टर्की देश के मध्य में बड़ी झीलें हैं व किजिलिरमेक नदी गुजरती है। इस पूरे इलाके में कई बार भारी बमबारी हुई है। इटली के रोम शहर से टिबर नदी निकलती है। रोम सदा से हिंसा का शिकार रहा और बम वर्षा का शिकार हुआ। जर्मनी और आस्ट्रिया के बीच से होती हुई राइन नदी स्विट्जरलैण्ड की 60 वर्ग किमी. में फैली हुई राइन झील में मिलती हैं और अंतत: राइनफॉल में बदल जाती है। हम जानते हैं कि द्वितीय विश्वयुद्ध में अमेरिका और सहयोगी सेनाओं ने आस्ट्रिया और जर्मनी के बहुत सारे शहरों पर भयानक बमबारी की थी।

चित्तौडग़ढ़ जैसे शहर में मुगलों के आक्रमण के समय तोपों का प्रयोग किया गया था। ऐसा नहीं कि यूरोप के और शहरों में द्वितीय विश्व युद्ध के समय ही बमवर्षा हुई हो बल्कि मध्यकालीन भारत में तोपों का जब प्रयोग हुआ तो उनके माध्यम से शहरों और किलों पर युद्ध के समय बमबारी की जाती रही है। जब तोपों का आविष्कार नहीं हुआ था तो क्या बमबारी का कोई और प्रकार था? हाँ, तब बमवर्षा ना होकर तीर-तलवारों के युद्ध में भी वहाँ भारी विनाश कार्य होता रहा है।

जिन शहरों के बीच में से नदी नहीं गुजरती है, परन्तु बहुत बड़े आकार की झीलें हैं, वहाँ भी भीषण अग्निवर्षा होती रही है। उदाहरण के तौर पर इराक की थेर्था झील, हबेनैयाह झील और रजाजा झील के आसपास के क्षेत्र ऐसे हैं जहाँ बहुत बमबारी की जाती रही है।

पूर्वी यूरोप के वे देश जहाँ से मित्र राष्ट्रों की सेनाओं ने या पहले नेपोलियन की सेनाओं ने आक्रमण किये, में भी उन क्षेत्रों में बमबारी अधिक देखी गई, जहाँ से शहर के बीचों-बीच से बड़ी नदियाँ गुजरती है। उदाहरण के तौर पर यूके्रेन के किव (Kyiv), चेरकसी (Cherkasy) और जेपोरिझिआ। रूस में भी बहुत बड़ी नदी लेना, जो कि उत्तर में लापतेव समुद्र में गिरती है, के आसपास के कई शहर हिंसा और अग्नि वर्षण का शिकार रहे।

अब दिल्ली में भी यमुना नदी के दोनों बसावट हो गई है जो कि चिन्ता का कारण हो सकता है। इससे यह एक स्वाभाविक निष्कर्ष निकलता है कि दिल्ली सहित वे सभी शहर जिनके बीच से नदी निकलती है, युद्ध क्षेत्र बन सकती हैं।

 

 

 

 

विशिष्ट स्वप्नफल

संतान प्राप्ति - स्वप्र में मूर्ति, हाथी, संत, गुरु, सोना, रत्न, जौ, गेहूँ, सरसों, कन्या, अपनी ही मृत्यु देखना, केला, कल्पवृक्ष, तीर्थ, आभूषण, छाछ, बेल, माला, चंदन और सफेद फूल दिखें तो संतान की शीघ्र प्राप्ति होती है।

धन प्राप्ति - हाथी, घोड़ा, पहाड़ और वृक्ष पर व्यक्ति चढ़ता हुआ व्यक्ति दिखे तो धन प्राप्ति होती है। शहद, गाँव, पहाड़, नदी और समुद्र दर्शन से भी धन प्राप्ति होती है। यदि हाथी, घोड़ा और शेर पर बैठ कर जाता हुआ व्यक्ति दिखे तो धन प्राप्ति बहुत अधिक शीध्र होती है। यदि तलवार, धनुष और बंदूक आदि से शत्रु पर प्रहार करता हुआ दिखे तो भी धन प्राप्ति होती है। दही, छत्र, फूल, चँवर, अन्न, चंदन, वीणा, सूर्य, पान और दीपक के दर्शन हो तो भी धन प्राप्ति होती है।

मृत्यु की सूचना - यदि नग्न व्यक्ति मैला-कुचैला या तेल लेपा हुआ व भैंस, गधे, ऊँट और काले घोड़े पर चढ़कर दक्षिण दिशा की ओर जाए तो यह मृत्यु की सूचना है। यदि कोई ऐसा व्यक्ति जिसका कोई अंग भंग हुआ पड़ा हो, वह सूतिका गृह में या रसोई में या फल-फूल वाले जंगल में प्रवेश करे तो यह मृत्यु की सूचना है। नदी के जल में व्यक्ति का नीचे चले जाना, सूर्य,चन्द्रमा, ध्वजा या ताराओं का टूटना या गिरना या भस्म, लोहा, लाख, गीदड़, बिच्छू, मक्खी, सर्प, बिलाव और मुर्गा दिखे या बरात जाती दिखे तो मृत्यु की सूचना है। यदि स्वप्र में ही दाड़ी-मूँछ और सिर के बाल मुंडवाते हुए दिखे तो यह मृत्यु की सूचना है।

स्वप्न कब निष्फल है?

कृष्ण पक्ष की दशमी, एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी और अमावस्या के स्वप्न मिथ्या होते हैं और फल नहीं देते। शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी और चतुर्दशी में देखे हुए स्वप्रों के फल नहीं मिलते। शुक्ल पक्ष की षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी, दशमी तथा कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को देखे गये स्वप्र के फल शीघ्र मिलते हैं। शुक्ल पक्ष की द्वितीया को स्वप्न देखें तो विपरीत फल मिलता है। खुद को देखें तो दूसरे को फल मिलता है, दूसरे को देखें तो खुद को फल मिलता है। पूर्णिमा के दिन देखे गये स्वप्न का फल अवश्य ही मिलता है।

 

विवाह आदि वर्जित हैं अप्रैल तक

इन दिनों बृहस्पति ग्रह पाँच अप्रैल तक मकर राशि में हैं। मकर राशि बृहस्पति की नीच राशि कहलाती है। बृहस्पति जब कर्क राशि में हों तो उच्च के कहलाते हैं और मकर राशि में हों तो नीच के। नीच राशि में जब बृहस्पति हों तो विवाह आदि का निषेध रहता हैं यद्यपि किसी-किसी परिस्थिति में विवाह मुहूर्त्त निकाले जाते हैं। ऋषियों ने तो सिंह राशि में गुरु होने पर भी विवाह आदि निषेध बताये हैं। ऋषियों में इस बात को लेकर मतभेद रहे हैं कि नीच राशि के बृहस्पति में भारत के सभी क्षेत्रों में विवाह निषेध नहीं होते हैं।

इन दिनों बृहस्पति अस्त भी चल रहे हैं और फरवरी के दूसरे के सप्ताह में उदय होंगे, उसके तुरन्त बाद शुक्र अस्त हो जाएंगे। विवाह जैसे कार्य में और भूमि पूजन जैसे कार्यों में बृहस्पति और शुक्र का अस्त होना बड़ा बाधक है। इस घटना को तारा डूबना भी कहते हैं। इन कारणों से वर्ष 2021 में विवाह आदि के मुहूर्त्त अप्रैल के उत्तराद्र्ध में ही किये जा सकेंगे।

वैसे भी धनु राशि के सूर्य होने पर, जो कि दिसम्बर मध्य से जनवरी मध्य तक रहते हैं और मीन राशि में सूर्य रहने पर जो कि मार्च मध्य से लेकर अप्रैल के मध्य तक होते हैं, विवाह और वास्तु जैसे गम्भीर विषयों के मुहूर्त्त निषिद्ध होते हैं।

 

आकाश में भी है एक महासर्प

खगोलशास्त्र का ड्रेको ही वह महासर्प है जिसे हम कालिय मण्डल के नाम से जानते हैं। यह तीन ओर से लघु सप्तऋषि मण्डल को घेरे हुए है। हम जानते हैं कि सप्तऋषि मण्डल से ही लघु सप्तऋषि मण्डल को देखा जा सकता है, जिसमें कि धु्रव तारा स्थित है।

कालिय मण्डल भी धु्रव तारे के ऐसे ही चक्कर लगाता है जैसे कि सप्तऋषि मण्डल लगाता है। अप्रैल, मई, जून के महीनों में यह भारत से ज्यादा अच्छा दिखता है, जबकि उत्तरी अक्षाशों से इसे देखा जाना और भी आसान है।

इस नक्षत्र मण्डल का प्रसिद्ध अल्फा तारा है जो कि सप्तऋषि मण्डल के वशिष्ठ तारे के बहुत नजदीक है। यह वही कालिया नाग है जिसका भगवान कृष्ण ने बचपन में ही दमन कर दिया था और उसे शाप मुक्त करके दूर समुद्र में वास करने का आदेश दिया था। कालिया नाग की पत्नी के अनुरोध पर भगवान कृष्ण ने उसे छोड़ दिया था। यह कालिय मण्डल ही कालिया नाग है।

यूनानी ज्योतिषियों ने इसे ड्रेगन के रूप में देखा, अरबों ने भी इसे ड्रेगन के रूप में ही देखा और भारत में शिशुमार चक्र के रूप में देखा। इस मण्डल का अल्फा तारा (थुबान) तारा बहुत चमकीला है और करीब 5 हजार वर्ष पूर्व यही ध्रुव बिन्दु होता था और हम इसे धु्रव तारे के रूप में जानते हैं। चमकीला होने के कारण यह दिशा ज्ञान का काम कराता था। मिश्र के पिरामिडों में से एक पिरामिड में स्थित एक छिद्र से इसे देखा जा सकता था, ठीक उसी तरह जैसे जयपुर की वेधशाला के सम्राट यंत्र में छत पर से एक छेद से आई हुई पतली सी सूर्य किरणों की रेखा से सूर्य को दक्षिण गोल से उत्तर गोल में प्रवेश करते हुए देखा जा सकता है। यह अद्भुत नजारा होता है। कालिय मण्डल के पास ही एक ऐसी नीहारिका है जिसमें बहुत चमकीली गैसें हैं और एक तारा ऐसा है जिसके सतह का तापमान हमारे सूर्य के 6 हजार डिग्री के मुकाबले 57 हजार डिग्री सेन्टीग्रेड है।

कालिय मण्डल नंगी आँखों से देखा जा सकता है परन्तु यदि 10 गुना बड़ी कर देने वाली दूरबीन से भी देखा जाए तो यह महासर्प अत्यंत आकर्षक तारा योजना है।

 

राहु-केतु

     उत्तर कालामृत के रचनाकार कालिदास ने राहु और केतु को लेकर नई ऐसी बातें कहीं जो सामान्यत: शास्त्रों में नहीं मिलती हैं। वे राहु और केतु को ऐसी क्रांतिकारी शक्ति मानते हैं जो किसी भी अन्य ग्रह से अधिक तीव्रता से अपना परिणाम देती है। उनके कुछ श्लोकों को उद्धत करके हम उन पर विचार करेंगे।

यद्यद्दुर्भगतौ यदीशसहितावेतौ तम: खेचरौ

स्यातां तत्फलदायिनौ बलयुतौ केन्द्रत्रिकोणेश्वरा:।

क्षेमं ते ददति प्रसरक्तरहिताश्चेदन्यता ते युता:,

तौ दुष्टावपि योगत: शुभकरौ सम्बन्धमात्रेण तौ।।

     राहु और केतु यदि षड्बल में बलवान हो तो अशुभ ग्रहों की भांति फल देते हैं, परंतु यदि ये जिन भावों के स्वामियों के साथ तो उन भावों के स्वामियों की भांति फल देते हैं, जिन भावाधिपतियों के साथ ये विराजमान हैं। इसी भांति यदि त्रिकोण के स्वामी का संबंध राहु से हो और ये त्रिकोण में ही स्थित हों तो योगकारक होते हैं। पाराशर के इस मत के विपरीत कालिदास करते हैं कि केन्द्र या त्रिकोण के स्वामी के साथ राहु या केतु की युति हमेशा शुभ फल नहीं देती।

तौ धर्मे यदि कर्मणि स्थितियुर्जा व्यत्यासतो वा स्थितौ

योगं तौ कुरुयस्त्रिकोणपतिना योगोऽिप सौख्यप्रद:।

सौख्यं योगकृतोर्दशास्वपि भवेच्चैतद्युजां श्रेयसां सम्बन्धादथ योगिनोऽशुभकृतां भुक्ताशुभं योगजम्।।

     यदि राहु और केतु नवम स्थान में हो और दशमेश से शुभ हो और राहु या केतु दशम स्थान में हो और नवमेश से युति हो या राहु या केतु दशम स्थान में हो और दशमेश और नवमेश में स्थान परिवर्तन हो तो जातक महासुखी होगा। राहु केतु का किसी भी भांति नवमेश या दशमेश से संबंध होना शुभफलदायी बना देता है। दशाफल या तो राहु या केतु की अंतर्दशा में मिलेंगे अथवा इनसे युति रखने वाले ग्रहों की दशा अंतर्दशा में फल मिलता है। यदि कोई ग्रह अशुभ योगकारक हो तो राहु या केतु से युत होकर वह अशुभ फल देते हैं।

     उपरोक्त का निष्कर्ष यह है कि यदि योगकारक ग्रह शुभ हुए तो राहु केतु शुभ फलदायी और यदि अशुभ हुए तो अशुभ फलदायी सिद्ध होते हैं।  

युल्येतां तु तमोग्रहौ शुभफलौ केन्द्रत्रिकोणेऽथवा

तन्नाथेन युतौ त्रिकोणपतिना केन्द्राधिनाथेन वा।

धर्मेट्कर्मपती न रन्ध्रशिवपौ तन्नाथयोगेन वा।

योगो नैव नरस्य चाष्टममिति स्थानं तदे्वायुष:।।

     राहु और केतु त्रिकोण में स्थित हों और केन्द्राधिपति से युति करते हों और केन्द्र में हो और त्रिकोणाधिपति से युति करते हों तो अत्यंत शुभफलददायी होते हैं, परंतु राहु या केतु से युति करने वाला ग्रह अष्टमेश, नवमेश हो या नवमेश के साथ द्वादशेश भी हो तथा नवमेश एवं दशमेश अष्टमेश या द्वादशेश से भी युत हो तो राहु और केतु से जनित समस्त शुभ योगफल नष्ट हो जाते हैं। इस युति को हम जन्म लग्न में इस भांति प्रकट करेंगे।

     इस जन्मपत्रिका में यद्यपि राहु त्रिकोणाधिपति से युत होकर दशम भाव अर्थात केन्द्र स्थान में बैठे हैं परंतु चूंकि त्रिकोणेश शनि अष्टमेश भी हैं। अत: राहु से युति करके उसके शुभ फल को नष्ट कर देंगे।

    

पर्वत पर निर्मित रेखाओं द्वारा व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र

अवतार कृष्ण चांवला

 व्यक्ति को शुक्र, मंगल एवं चन्द्र क्षेत्र से उदित होने वाली प्रभाव रेखा सर्वाधिक प्रभावित करती हैं। मुख्य रेखाओं यथा जीवन रेखा, हृदय रेखा, भाग्य रेखा, मस्तिष्क रेखा इत्यादि के अतिरिक्त इन प्रभाव रेखाओं से भी जातक प्रभावित होता है। ये प्रभाव रेखाएं मुख्य रेखाओं के फलों को परिवर्तित करने की क्षमता रखती हैं।

हथेली में सबसे बड़ा क्षेत्र शुक्र का होता है तथा ज्यादातर प्रभाव रेखाएं यहीं स्थित होती है। इनमें से कुछ स्पष्टï होती है तथा कुछ बारीक-बारीक एवं जाल सदृश होती है इन्हें चिन्ता रेखाएं कहा जाता है जो चिंता उत्पन्न करने का कारण बनती हैं तथा स्नायविक दुर्बलता की ओर इशारा करती है।

शुक्र एवं निम्न मंगल से उदित छोटी-छोटी प्रभाव रेखाएं जितनी बार जीवन रेखा को काटती है जातक के जीवन में रिश्तेदारों एवं मित्रों का उतना ही दखल होता है। यदि इनकी संख्या अधिक हो तो ये जातक के लिए चिंता का कारण बन जाती हैं।

कई बार शुक्र क्षेत्र पर मंगल रेखा के समानान्तर रेखाएं चलती हैं जो जातक पर विपरीत लिंगी जातकों का प्रभाव दर्शाती है। यदि ये अपना रास्ता बदल ले तो उस अवधि में जहाँ से ये परिवर्तित होती है जातक पर उनका प्रभाव कम होना शुरु होता है। यदि आगे की अवधि तक ये रेखाएं गहरी होकर चलें तो जातक पर उनका गहरा प्रभाव होता है।

शुक्र से उदित प्रभाव रेखा जीवन रेखा को काटकर बृहस्पति तक पहुंचे तो जातक महत्वाकांक्षी एवं दंभी हो जाता है। साथ ही यह रेखा यदि किसी आड़ी रेखा द्वारा बाधित हो जाए तो यह असफलता दर्शाती है। परन्तु यही रेखा जब किसी सितारे से संयोग कर ले (बृहस्पति पर) तो यह जातक को सफल सिद्ध करती है। उक्त प्रभाव रेखा बृहस्पति तक आए तथा अचानक ही मोड लेकर शनि क्षेत्र पर पहुंच जाये तो जातक धार्मिकता का आवरण ओढ़कर अपनी आजीविका चलाता है।

शुक्र क्षेत्र से उदित प्रभाव रेखा जीवन रेखा से उदित किसी उध्र्व रेखा को काटती हुई शनि के क्षेत्र पर पहुंचे तो जातक का वैवाहिक विघटन अथवा क्लेश पूर्ण वैवाहिक जीवन होता है।

इसके अतिरिक्त शुक्र/निम्न मंगल से उदित प्रभाव रेखा शनि क्षेत्र पर पहुंचकर द्विशाखित अथवा द्विजिह्वïी का रूप धारण कर लें तो यह दुर्घटना अथवा दु:खद वैवाहिक जीवन दर्शाती है। अर्थात दु:खद वैवाहिक जीवन ही एक दुर्घटना सिद्घ होता है।

शुक्र/मंगल से उदित प्रभाव रेखा का मध्यमा अंगुली के तृतीय पर्व में प्रवेश करना स्त्रियों में गर्भाश्य संबंधी विकारों के कारण संतान प्राप्ति में बाधा दर्शाती है।

शुक्र क्षेत्र से उदित प्रभाव रेखा सीधी सूर्य पर्वत पर पहुंचे तो जातक की उन्नति एवं यश वृद्घि में उसके रिश्तेदारों  एवं मित्रों का सहयोग रहता है। यदि यह प्रभाव रेखा लहरदार होकर चले तो सफलता एवं यश में बाधा होती है।

अंगूठे के दूसरे पोरे से चलकर आने वाली प्रभाव रेखा, जीवन रेखा को काट दे तो जातक का कोई रिश्तेदार/मित्र उसके साथ धोखा करता है। इसके विपरीत यही रेखा यदि अंगूठे के पहले पोरे से चलकर जीवन रेखा को काट दे तो किसी रिश्तेदार के विश्वासघात की वजह से जातक की किसी हथियार से मृत्यु हो सकती है।

किसी अर्धचन्द्राकार रेखा के जीवन रेखा को काटने पर उस अवस्था में जातक को मृत्यु या मृत्यु तुल्य कष्टï हो सकता है क्योंकि ऐसी अवस्था में जीवन रेखा में प्राणशक्ति का प्रवाह रूक जाता है।

शुक्र क्षेत्र से उदित प्रभाव रेखा, यदि जीवन रेखा, भाग्य रेखा, मस्तिष्क एवं सूर्य रेखा को काटती हुई उध्र्व मंगल पर पहुंचे तो किसी परिचित की वजह से जातक के सिर में चोट लगती है। इसके विपरीत उध्र्व मंगल पर रेखाओं का जाल हो अथवा उध्र्व मंगल विकसित हो तो ऐसी स्थिति में जातक में क्रोध की मात्रा अधिक होने से वह स्वयं दूसरे को चोट पहुंचा सकता है।

शुक्र से उदित प्रभाव रेखा यदि भाग्यरेखा की सहायक रेखा बनकर चले तो जातक की भाग्यवृद्घि में रिश्तेदारों एवं स्वयं का प्रयास सम्मिलित रहता है।

शुक्र, मंगल से उदित प्रभाव रेखा भाग्य रेखा को काटकर चन्द्र पर्वत से संयोग करे तो जातक के रोजगार में विपरीत लिंग वालों के हस्तक्षेप की वजह से दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति उत्पन्न हो सकती है।

शुक्र से उदित सबल प्रभाव रेखा बुध पर्वत पर पहुंचे तो जातक के व्यापारिक अथवा ज्ञान-विज्ञान संबंधी लाभों में इष्टïमित्रों एवं रिश्तेदारों का सहयोग रहता है।

शुक्र से उदित प्रभाव रेखा जीवन एवं मस्तिष्क रेखा को काट दे तो जातक की मौलिक सोच समझ में रिश्तेदारों द्वारा अनावश्यक हस्तक्षेप से मस्तिष्क संबंधी विकार उत्पन्न होने की संभावना रहती है।

प्रभाव रेखा के हृदय रेखा द्वारा बाधित होने पर किसी रिश्तेदार, भाई-बन्धु के विश्वासघात के कारण मन व्यथित होता है। यदि यह रेखा बाधित न हो तथा हृदय रेखा को काटकर बाहर आ जाये तो जातक के प्रेम संबंधों अथवा भावात्मक लगावों में उसके संबंधी बाधक बनते हैं।

मस्तिष्क रेखा एवं हृदय रेखा को काटकर बुध पर्वत पर पहुंचने वाली प्रभाव रेखा तलाक की संभावना बढ़ा देती है साथ ही वह अनुराग रेखा को भी काट दें तो अलगाव अवश्य ही होता है। द्विभाजित प्रभाव रेखा हृदय रेखा द्वारा बाधित होने पर भी पति पत्नी में अलगाव पैदा करती है।

अनुराग रेखा को काटने वाली प्रभाव रेखा यदि द्वीपयुक्त हो तो किसी षडयंत्र के फलस्वरुप विवाहित जीवन में अलगाव होता है।

हृदय रेखा को काटने वाली प्रभाव रेखा में ऐसा द्वीप हो जो जीवन रेखा को स्पर्श  करता हो तो प्रेम संबंधों में धोखे के फलस्वरुप जातक का जीवन गंभीर रूप में प्रभावित होता है।

सूर्य रेखा को काटने वाली प्रभाव रेखा जीवन रेखा के प्रारम्भ से उदित हो तो यह कष्टïपूर्ण बाल्यकाल दर्शाती है।

जीवन रेखा से उदित उध्र्व जाये तो रिश्तेदारों से मुकदमाबाजी में जातक की जीत दर्शाती है यदि सूर्य रेखा को काट दें तो पराजय के कारण प्रतिष्ठा हानि दर्शाती है।